- जगदीश रत्तनानी
विकास के इस चरण में भारत निजी क्षेत्र में विश्वास नहीं करता है। 2016-17 के लिए भारत के आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है- 'भारत में (निजी क्षेत्र और संपत्ति के अधिकारों के बारे में) दोहरी वृत्ति कहीं और की तुलना में अधिक प्रतीत होती है..., ऐसा प्रतीत होता है कि भारत की बाजार विरोधी अलग-अलग मान्यताएं हैं।'
ऐसा पहले भी हो चुका है। एक व्यवसाय बढ़ता है, उसका मालिक कनेक्शन बनाता है, राजनीतिक संरक्षण हासिल करता है और सोचता है कि वह किसी भी चीज से बच सकता है। यह खेल थोड़े समय तक काम करता है। झूठे गर्व, अनुमानित संख्या और प्रचार की लहर अपने साथ अपराजेय होने की भावना लाती है। वह और बड़े दांव खेलता है; और दुनिया उस व्यक्ति को खुश करती है जिसने सफलता के तौर-तरीकों को अलग तरह से लिखा है, उसे नियमों को फिर से लिखने के लिए कहा जाता है। उसके बाद उसका साम्राज्य एकाएक ढह जाता है।
हमारे पास व्यावसायिक घोटालों की लंबी सूची है। समय के साथ घोटाले बड़े हो जाते हैं। नियमों का उल्लंघन सामान्य बात हो जाती है। यह खराब नियामक प्रणालियों द्वारा बदतर बनाए गए खराब शासन का नकारात्मक पक्ष है। इसके परिणाम हर जगह देखने को मिलते हैं, जैसे कि गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों में जो एक समय में 10 लाख करोड़ रुपये को पार कर गई थीं या सार्वजनिक सेवाओं की कमजोर डिलीवरी, परियोजनाओं में देरी और नौकरशाही जो आम लोगों के लिए कम किन्तु शक्तिशाली लोगों के लिए अधिक काम करती है। यहां आश्चर्य की बात यह नहीं है कि घोटाले होते हैं या व्यवसाय कुछ लोगों में लालच और कुछ लोगों में इससे भी बदतर लालच पैदा करता है। अचम्भा इस बात का होता है कि शासन धोखेबाजों के सिरमौर द्वारा किए गए खुली आंखों से दिखने वाले घोटालों पर भी कार्रवाई करने में असमर्थ या अनिच्छुक है।
इसलिए आज अडानी प्रकरण में सवाल यह नहीं है कि राजनीतिक संगठन और राज्य कितने गहरे तक शामिल हैं जिसका जवाब एक राजनीतिक पिंग-पोंग बन जाता है, बल्कि सवाल यह है कि राज्य कितनी तेजी से अपने समर्थन को उसके खिलाफ कार्रवाई में बदल सकता है। यह इस बात का संकेत देने का समय है कि जो भी कनेक्शन हों,कम से कम जब वे खुले में आएंगे तो नियमों के भारी उल्लंघन के आरोपों की जांच की जाएगी और उन पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।
अडानी मामला अब उस मुकाम पर पहुंच चुका है जहां सरकार के पास एक विकल्प है- वह खामोश बैठ सकती है और कुछ नहीं करेगी या वह हिंडनबर्ग रिसर्च के शब्दों में, 'दुनिया के तीसरे सबसे अमीर आदमी ... कॉर्पोरेट इतिहास में सबसे बड़े धोखेबाज' कथित व्यक्ति के खिलाफ पूरी जांच कर उसके खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई करेगी। यह सोचना गलत होगा कि हिंडनबर्ग के आरोपों के बाद से मार्केट कैप में अडानी के स्टॉक में अचानक 100 अरब डॉलर तक की गिरावट आई है और जिसे सरकार के समर्थन से संभाला जा सकता है या यह धारणा भी गलत होगी कि अडानी अभी भी राजनीतिक नेतृत्व के चहेते बने हुए हैं।
निक्केई एशिया के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था में 1.2 प्रतिशत योगदान रखने वाले तथा अपनी दस सूचीबद्ध कंपनियों के जरिए 3.39 ट्रिलियन रुपये (41.1 बिलियन डॉलर) तक बढ़ रहे किन्तु विश्वसनीयता और देनदारियों के संकट का सामना कर रहे समूह के महत्व तथा उसमें मची हलचल की भयावहता और राष्ट्र के लिए इस हलचल का जो मतलब हो सकता है उसे अनदेखा नहीं किया जा सकता है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि भले ही निकट अवधि में शेयर बाजार बंद हो जाए लेकिन अडानी की कहानी अडानी की विफलता की नहीं है बल्कि भारत के विफल होने की है। यह एक उदारीकरण कार्यक्रम की कहानी है जो 1991 के बाद के युग की है तथा जो अपनी सीमाओं तक पहुंच गया है। इसका कारण यह है कि उदारीकरण के इस रास्ते का उन लोगों द्वारा अपहरण कर लिया गया है जो चुने हुए कुछ लोगों के लिए असफल-सुरक्षित सौदों के संरक्षण में उद्यमिता को जोखिम लेने और गले लगाने की प्रवृत्ति से सुरक्षित दांव लगाने के लिए फिर से परिभाषित करते हैं, जो हमारे समय के 'घनिष्ठ दोस्ती' वाले पूंजीपतियों को चिह्नित करते हैं।
यह वह भारत नहीं है जो आर्थिक सुधारों को बनाए रख सकता है। जो व्यवसाय सुधारों को बदनाम करते हैं और निजी क्षेत्र में भारतीयों के पहले से ही कमजोर विश्वास को कम करते हैं, वे आगे बढ़ने वाले भारत का भविष्य नहीं हो सकते हैं। यह बात फिर दोहरायी जाती है कि कृषि कानूनों के खिलाफ किया गया आंदोलन, नीति बनाने वाले संस्थानों और निजी क्षेत्र में विश्वास की अंतर्निहित कमी के विरुद्ध था जिसे कृषि व्यवसाय सौंपा जा रहा था। इसका एक उदाहरण यह था कि भाजपा नेता और पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कृषि कानूनों की खिलाफत की और सवाल उठाए कि कृषि कानूनों के आने के बाद गोदामों के लिए भूमि अधिग्रहण करने अडानी किस तरह सामने आए।
ऐसा लगता है कि विकास के इस चरण में भारत निजी क्षेत्र में विश्वास नहीं करता है। 2016-17 के लिए भारत के आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है- 'भारत में (निजी क्षेत्र और संपत्ति के अधिकारों के बारे में) दोहरी वृत्ति कहीं और की तुलना में अधिक प्रतीत होती है..., ऐसा प्रतीत होता है कि भारत की बाजार विरोधी अलग-अलग मान्यताएं हैं।'
संक्षेप में कहें तो अडानी ने सत्तारुढ़ ताकतों के लिए जो कुछ भी किया है, उन ताकतों को यह फैसला करना होगा कि इस गंदगी को साफ करने और कुछ दुष्ट खिलाड़ियों को बाहर करने का यही समय है। यदि ऐसे लोगों को लंबे समय तक सहा जाता है तो राष्ट्र को उसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी होगी।
यह सच है कि सिर्फ भारत में ही घोटाले नहीं होते। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में भी बड़े-बड़े घोटाले हुए हैं- उस लंबी सूची में से कुछ नाम थेरानोस, मैडॉफ, एनरॉन के हैं। जिस तरह भारतीय मीडिया अडानी को संभालता था, उसी तरह अमेरिकी मीडिया ने एनरॉन के साथ व्यवहार किया- पहले रेड कारपेट स्वागत, फिर कचरे की टोकरी दिखा दी।
अडानी के मामले में मीडिया दिग्गजों ने मीडिया बैरन बनने की कोशिश में लगे अडानी की प्रशंसा की (एक कवर स्टोरी के अनुसार, 'स्व-निर्मित अरबपति गौतम अडानी के लिए 2022 अपने स्वयं के मानकों के अनुसार भी असाधारण रहा') अब वह दिग्गज मीडिया, उस मीडिया के निशाने पर है जो अडानी से दूर रहा। तब जिन लोगों ने अडानी के बारे में सवाल उठाए थे, उन्हें उसकी कीमत चुकानी पड़ी। अडानी ने एक दोस्ताना टीवी इंटरव्यू में राहुल गांधी की खिल्ली उड़ाई थी। अडानी ने खुद पर एक पुस्तक प्रकाशित करवाई जिसका प्रकाशन समारोह आईआईएम अहमदाबाद जैसी जगह पर किया गया। अब पूरा राष्ट्रीय मीडिया उस व्यक्ति को निर्वस्त्र करने में लगा हुआ है जो अभी हाल तक कुछ गलत नहीं कर सकता था। इसे सौम्य शब्दों में कहें तो अडानी के सामने कई समस्याएं हैं एवं विरोध में खड़ा प्रेस और जबर्दस्त विपक्ष उनकी राह के कई कांटों में से दो प्रमुख कांटे हैं जिन्होंने उनकी रातों की नींद हराम कर दी है।
अमेरिका को ही ले लीजिए! 2001 में अपनी तरह के सबसे बड़े दिवालिया प्रकरण एनरॉन के मामले में एनरॉन के दिवालियापन से पहले अमेरिकी मीडिया एक ऐसे व्यवसाय के लिए चीयर लीडर्स के रूप में काम करने वालों में से एक था जो शुद्ध रूप से एक धोखाधड़ी थी। मीडिया दिग्गजों ने पुरस्कारों, विज्ञापनों और अप्रैल 2000 के फॉर्च्यून पत्रिका के इस क्लासिक उद्धरण के साथ इसे उत्साह का प्रतीक बनाया- 'एक देश-क्लब डिनर डांस की कल्पना करें, जिसमें पुराने खयालों वाले दकियानूसी बूढ़े और उनकी पत्नियों का एक समूह आधे-अधूरे मन से घूम रहा हो ... अचानक युवा एल्विस एक झरोखे से वहां उतरता है, सुनहरे लैमे सूट में एल्विस चमकदार गिटार के साथ कूल्हे मटकाते हुए नाचता है (और पूरे माहौल को बदल देता है)... विनियमित उपयोगिताओं और ऊर्जा कंपनियों की उबाऊ दुनिया में एनरॉन कॉर्प वह गेट-क्रैशिंग एल्विस है।'
बहरहाल, जब धोखाधड़ी का पता चला और एनरॉन के दिग्गजों को दोषी ठहराते हुए जेल में डाल दिया गया तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ा कि एनरॉन के अध्यक्ष केन ले को अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के चुनाव अभियान के बहुत करीब और वित्त पोषित करने के लिए जाना जाता था। यह भी कि उसके सीईओ जेफ स्किलिंग भी इस अभियान में अच्छी तरह से जुड़े हुए थे तथा शक्तिशाली हार्वर्ड बिजनेस स्कूल नेटवर्क का हिस्सा थे।
अमेरिकी नियामकों ने घोटालेबाजों पर बिना किसी डर के कार्रवाई की। दोषियों को सजा देने के लिए न्याय तत्पर था। अमेरिका में जब व्यवसाय में घोटाले होते हैं तो लगभग हर बार प्रशासन और न्याय व्यवस्था ने इसी तरह काम किया है। भारत में, आमतौर पर ऐसा नहीं हुआ है जिसके कारण सिस्टम को गहरा नुकसान हुआ है- अडानी परिवार द्वारा कभी भी किए जा सकने वाले नुकसान से कहीं अधिक।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। सिंडिकेट : दी बिलियन प्रेस)